Tuesday, June 18, 2013

मनोवांछित फल देतीं उच्चैठ भगवती

बेनीपंट्टी (मधुबनी), निज प्रतिनिधि : कालिदास की याद संजोये मिथिलांचल के सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान वासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं का केन्द्र बना हुआ है। यहां पहुंचने वाले भक्तों को दिव्य अनुभूति अलौकिक शांति मिलती है। अपनी गौरवमयी संस्कृति एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए विख्यात बेनीपंट्टी अनुमंडल प्रक्षेत्र आज भी महत्वपूर्ण शक्तिपीठों एवं सिद्ध पीठों के लिए प्रसिद्ध है। यहां उच्चैठ कामना भगवती सिद्धिदात्री दुर्गा के रूप में विराजमान हैं। काली, कालिया को कालिदास बनाने वाली, जानकी की कामना पूर्ण करने वाली, राजा जनक, याज्ञवल्क्य, मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, विदूषी भारती, गोनू झा जैसे कई महापुरुषों की कामनापूर्ण करने वाली यह दुर्गा हैं। इन्हें वन दुर्गा व छिन्नमस्तिका दुर्गा भी कहा जाता है। बेनीपंट्टी अनुमंडल मुख्यालय से महज पांच किमी की दूरी पर थुम्हानी नदी के किनारे उच्चैठ गांव है। यहां दुर्गा मंदिर से सटे उत्तर-पूर्व में सरोवर है व सरोवर के पूर्व श्मशान। ज्ञान की प्राप्ति के बाद कालिया के कालिदास बनने की प्राचीन जनश्रुतियों से उच्चैठ दुर्गा की व्यापकता का भान होता है। सिद्धपीठ में सच्चे मन से आने वाले भक्त खाली हाथ नहीं लौटते। उच्चैठ वासिनी देवी दुर्गा की अलौकिक गाथा आस्था, विश्वास, महिमा व आख्यान विशेषता जनश्रुति व पौराणिक तथ्यों पर आधारित है। श्रद्धालुओं, साधकों एवं आध्यात्मिक शक्तियों में विश्वास करने वालों को मां दुर्गा, महामाया की अनुकंपा पर मनोवांछित फल की प्राप्ति इसकी महिमा का जीता जागता प्रमाण है। अतिप्राचीन अनुपम दिव्य काले शिला खंड पर जो मूर्ति उत्कीर्ण है उसमें देवी चार भुजा वाली हैं। इनके बायें दो हाथों में कमल फूल व गदा तथा उसके नीचे बजरंगबली की मूर्ति, दाहिने हाथों में चक्र व त्रिशूल एवं उसके नीचे काली की मूर्ति, फिर उसके नीचे मछली का चिन्ह व बायें पांव में चक्र का चिन्ह अंकित है। सिंह के ऊपर कमलासन में विराजमान हैं भगवती जिनका कंधे के ऊपर नजर नहीं आता। इनमें महाकाली, महा लक्ष्मी, महा सरस्वती की सम्मिलित शक्तियों के होने का प्रमाण है। सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान में बिहार, बंगाल, झारखंड व अन्य प्रांतों सहित नेपाल तक के भक्त पहुंचते हैं। मां दुर्गा की पूजा के बाद संसार की सारी बाधाएं पीछे छूट जाती हैं।